अशोक कुमार निर्भय
नई दिल्ली। दिल्ली में इस साल दिवाली के मौके पर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों की अवहेलना करते हुए पटाखों की बिक्री और फोड़ने की घटनाएं बढ़ गईं। उच्चतम न्यायालय ने पहले ही निर्देश दिया था कि केवल ग्रीन पटाखों की बिक्री की अनुमति होगी, जिससे प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित किया जा सके। लेकिन दिल्ली की गलियों में स्थिति कुछ और ही नजर आई। अनधिकृत पटाखों की बिक्री खुलेआम हो रही थी, और लोग धड़ल्ले से इन्हें फोड़ते रहे, जिससे चारों ओर धुआं और शोर फैल गया।कई स्थानीय निवासियों ने बताया कि वे आदेशों की अवहेलना को देखकर चिंतित हैं। “हर साल यही होता है,” एक निवासी ने कहा। “सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया जाता, और प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है।” इस बार तो हालात और भी गंभीर थे, क्योंकि पटाखों के शोर ने न केवल लोगों की नींद को खराब किया, बल्कि प्रदूषण के स्तर में भी भारी वृद्धि की।दिल्ली के विभिन्न इलाकों में पुलिस और प्रशासन ने हालांकि कुछ कार्रवाई की, लेकिन यह बहुत सीमित थी। कई जगहों पर रेवेन्यू अधिकारियों ने पटाखों की दुकानों को बंद करने की कोशिश की, लेकिन फिर भी अनधिकृत विक्रेता सक्रिय रहे। दुकानों के बाहर लंबी कतारें देखने को मिलीं, जहां लोग अपने मनपसंद पटाखे खरीदने के लिए इंतजार कर रहे थे। यह स्थिति साबित करती है कि जब तक लोग खुद को शिक्षित नहीं करते, तब तक ऐसे नियमों का पालन करना मुश्किल है।पटाखों के शोर से न केवल वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बना। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि ऐसे प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। अस्पतालों में दाखिल होने वाले मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ, विशेष रूप से उन लोगों की, जिन्हें अस्थमा या अन्य श्वसन समस्याएं हैं। एक डॉक्टर ने कहा, “हर साल दिवाली के बाद हमें ऐसे मरीज मिलते हैं, जिनकी हालत बिगड़ गई होती है।”वहीं, नागरिक संगठनों ने भी इस समस्या के प्रति अपनी आवाज उठाई है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि सख्त कार्रवाई की जाए और जनता को पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए। एक संगठन के सदस्य ने कहा, “हम लगातार लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जब तक प्रशासन ठोस कदम नहीं उठाएगा, तब तक यह स्थिति नहीं बदलेगी।”इस बार कुछ क्षेत्रों में स्थानीय निवासियों ने खुद से पटाखों का विरोध किया। समूह बनाकर उन्होंने एकत्र होकर पटाखों को फोड़ने का विरोध किया और अपनी आवाज उठाई। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कुछ युवा वर्ग ने भी इस दिशा में पहल की। लेकिन, यह प्रयास भी अधूरा रहा, क्योंकि पटाखे फोड़ने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक थी।सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन केवल कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौती भी है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यही स्थिति रही, तो दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर में और भी वृद्धि होगी। इससे न केवल स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, बल्कि दिल्ली की जीवनशैली को भी गंभीर खतरा होगा।सरकार की ओर से कोई ठोस कदम उठाने में असमर्थता भी लोगों के गुस्से का कारण बनी। कई नागरिकों ने सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। “हम हर साल इस तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन कुछ नहीं कर रहा,” एक नागरिक ने लिखा।इस स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि सभी स्तरों पर जागरूकता फैलाई जाए। केवल कोर्ट के आदेशों के पालन से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि समाज के सभी वर्गों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यदि हम एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो हमें सामूहिक रूप से कदम उठाने होंगे।दिवाली का त्योहार खुशियों का प्रतीक है, लेकिन अगर यह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का कारण बनता है, तो हमें इसके बारे में गंभीरता से सोचना होगा। पटाखों की जगह दीये और मोमबत्तियों का उपयोग न केवल हमारे त्योहार को सुरक्षित बना सकता है, बल्कि यह पर्यावरण की भी रक्षा करेगा। यह समय है कि हम सभी एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभाएं और एक स्वच्छ, सुरक्षित और स्वस्थ समाज की दिशा में कदम बढ़ाएं।इस दिवाली, यदि हम सब मिलकर प्रयास करें और एकजुटता से इस समस्या का सामना करें, तो हम एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। यह जरूरी है कि हम अपनी खुशियों को दूसरों की सेहत के साथ न जोड़ें और समझें कि असली दिवाली तब मनाई जाती है जब हम सभी के लिए एक सुरक्षित और सुखद वातावरण सुनिश्चित कर सकें।