राजधानी में बढ़ रहे अवैध निर्माण को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने एमसीडी अधिकारियों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने एमसीडी के सीनियर अधिकारियों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। जिसमें जज ने उनसे पूछा कि उनके आदेशों की अवमानना के लिए उन्हें सजा क्यों नहीं मिलनी चाहिए।
दिल्ली हाई कोर्ट ने एमसीडी के सीनियर अधिकारियों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे पूछा है कि उसके आदेशों की अवमानना के लिए उन्हें दंडित क्यों न किया जाए। हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत जमीनी स्थिति से बेखबर नहीं है कि एमसीडी अधिकारियों की मंजूरी से उनकी नाक के नीचे अंधाधुंध तरीके से अवैध निर्माण हो रहे हैं। उनके द्वारा सिलेक्टिव तरीके से कानूनों का गलत इस्तेमाल कर निर्दोष लोगों को परेशान किया जाता है।
जस्टिस धर्मेश शर्मा ने मधुप व्यास और अन्य को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जो मौजूदा केस के वक्त तत्कालीन नॉर्थ एमसीडी(अब एमसीडी) में कमिश्नर थे। कोर्ट ने अधिकारियों को 16 जनवरी 2024 को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है। कोर्ट विरेन सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने अपने केस में हाई कोर्ट के 30 नवंबर 2017 और 26 फरवरी 2018 के आदेशों की अनदेखी का एमसीडी अधिकारियों पर आरोप लगाया है। याचिकाकर्ता को उनकी बहन ने दूसरी मंजिल की छत पर इमारत बनाने क अधिकार दे दिया था, जो उसकी मालिक थी। इसके बाद महिला ने तीसरी मंजिल पर इमारत बनाने के लिए प्लान मंजूर करने के लिए एमसीडी को आवेदन दिया, लेकिन निगम ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि फ्लोर वाइज निर्माण की मंजूरी नहीं दी जा सकती।
याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने एमसीडी को उनके आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया। इस आदेश पर अमल नहीं हुआ तो उन्होंने 2018 में अवमानना याचिका दायर की। इस पर एमसीडी ने कोर्ट में जवाब दिया कि आवेदन पर विचार चल रहा है। हालांकि, बाद में उसने इनके आवेदन को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि मास्टर प्लान 2021 के मुताबिक मौजूदा बिल्डिंग बायलॉज के तहत इसकी इजाजत नहीं है। इसके बाद सिंह ने मौजूदा अवमानना याचिका कोर्ट में दाखिल की।
हाई कोर्ट ने माना कि मौजूदा केस में एमसीडी अधिकारियों ने शरारत की। कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता कानून के मुताबिक वैध तरीके से निर्माण करना चाहते हैं और निगम के इस तरह के रवैये से उनकी उम्मीदों को झटका लगा। कोर्ट ने एमसीडी अधिकारियों से उम्मीद जताई कि वे अपने कर्तव्यों का पालन ढंग से करें, जिससे कि उनमें लोगों का विश्वास कायम हो सके। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून सामने नहीं रखा गया कि दिल्ली में फ्लोर वाइस कंस्ट्रक्शन की इजाजत नहीं है।