पहाड़गंज के 4196 तेली मंडी की इमारत: अवैध निर्माण का नया ठिकाना गैर क़ानूनी होटल, निगम प्रशासन मौन

विक्रम गोस्वामी / क्राइम हिलोरे न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली। दिल्ली के दिल कहे जाने वाले क्षेत्र पहाड़गंज की गलियों में एक बार फिर कानून और प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने वाला मामला सामने आया है। पहाड़गंज की गली भगवती ,तेल मंडी स्थित मकान संख्या 4196 में भू माफिया द्वारा अवैध निर्माण कर एक 5 मंज़िला इमारत खड़ी कर दी गई है, जानकारी के अनुसार जिसे अब बेड एंड ब्रेकफास्ट होटल के रूप में चलाया जाना तय है। हैरानी की बात यह है कि यह सब कुछ नगर निगम की नाक के नीचे हो रहा है और कोई अधिकारी इस पर कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। क्या यह माना जाए कि पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार की दलदल में धंसी हुई है?

इस इमारत के मूल स्वरूप को पूरी तरह बदलकर इसे एक व्यावसायिक परिसर में तब्दील कर दिया गया है, भू तल पर पार्किंग स्थल के स्थान पर होटल का रिसेप्शन बनाया गया है जबकि भू माफिया ने MCD की ऑनलाइन सर्विस के तहत नक्शा घर सेक्शन करवाया था जबकि यहां किसी भी प्रकार के व्यवसायिक उपयोग की वैध अनुमति नहीं ली गई। नियमों के अनुसार, किसी भी आवासीय भवन को होटल या बेक एंड ब्रेकफास्ट यूनिट में बदलने के लिए नगर निगम से अनुमति लेना अनिवार्य है। फायर डिपार्टमेंट की एनओसी, भवन संरचना की जांच रिपोर्ट और क्षेत्रीय ज़ोनिंग नीति का अनुपालन जरूरी होता है। लेकिन इस मामले में कोई भी औपचारिकता पूरी नहीं की गई, और इसके बावजूद यह इमारत धड़ल्ले से ‘एयर बीएनबी’ जैसी साइट्स पर ऑनलाइन उपलब्ध है।

यह सवाल बेहद गंभीर है कि जब यह निर्माण हो रहा था, तब नगर निगम के अधिकारियों ने इसे रोका क्यों नहीं? क्या भवन निरीक्षकों ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं या फिर उन्हें चुप कराने के लिए बिल्डर ने मुंह बंद करने की कीमत अदा कर दी थी? दिल्ली जैसे शहर में, जहां एक ईंट रखने से पहले अधिकारी नोटिस थमा देते हैं, वहां यह बहुमंज़िला होटल कैसे बन गया और कैसे संचालित हो रहा है?

यह अवैध निर्माण केवल कानूनी उल्लंघन का मामला नहीं है, बल्कि यह आम जनता की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। बिना किसी फायर सेफ्टी इंतजाम और बिना किसी आपात निकासी व्यवस्था के इस इमारत में पर्यटक ठहर रहे हैं। यदि कभी कोई दुर्घटना होती है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? बिल्डर की, निगम की, या उस व्यवस्था की जो हर बार आंखें मूंद लेती है जब कोई रसूखदार नियमों को तोड़ता है?

स्थानीय नागरिकों की शिकायतों के बावजूद इस अवैध निर्माण पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। क्या निगम को यह मालूम नहीं है कि यह इमारत अवैध रूप से व्यावसायिक रूप में प्रयोग हो रही है? या फिर यह जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है? इससे यह संदेह और गहराता है कि नगर निगम के भीतर कुछ अधिकारी इस अवैध धंधे में भागीदार हैं।

दिल्ली में अवैध निर्माण और होटल कारोबार का यह कोई पहला मामला नहीं है। आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, लेकिन कार्रवाई नाम मात्र की होती है। इसका कारण यह है कि जिन लोगों को निगरानी और नियंत्रण की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही इस भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा बन चुके हैं।

अब समय आ गया है कि दिल्ली सरकार, शहरी विकास मंत्रालय और मुख्यमंत्री कार्यालय इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराएं और दोषियों को कठोर सजा दिलवाएं। वरना ये अवैध इमारतें न केवल कानून की खिल्ली उड़ाती रहेंगी, बल्कि किसी बड़ी जनहानि की भूमिका भी बन सकती हैं।

इस रिपोर्ट के माध्यम से हम यह सवाल सीधे तौर पर उठाते हैं – दिल्ली नगर निगम क्या केवल कागजों पर काम करने वाली संस्था बनकर रह गई है? क्या बिल्डरों के दबाव में आकर कानूनों को ताक पर रख देना नई व्यवस्था बन चुकी है? यदि ऐसा नहीं है, तो फिर उपरोक्त भू माफिया और भवन स्वामी के खिलाफ अब तक कोई सख्त कार्रवाई क्यों नहीं हुई? जनता जानना चाहती है, और यह जानना उसका हक भी है।

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