“दिल्ली में अवैध निर्माण बेलगाम, निगम की आंखें पहाड़गंज पर बंद”
“सत्ता के साए में फल-फूल रहा पहाड़गंज का अवैध निर्माण माफिया”
“जहां बुलडोजर रुका है: पहाड़गंज में क्यों नहीं होती कार्रवाई?”
“दो साल, सैकड़ों निर्माण, शून्य कार्रवाई: पहाड़गंज की चुप्पी पर सवाल”
“कानून की आंखों पर पट्टी या राजनीतिक दबाव?”
“नगर निगम की निष्क्रियता या राजनीतिक मिलीभगत?”
“अवैध निर्माण बनाम प्रशासन: दिल्ली के दिल में सन्नाटा क्यों?”
“पहाड़गंज में अवैध निर्माण पर खामोश सरकार – आखिर क्यों?”
“वोट बैंक या शहरी विकास? पहाड़गंज में नीति उलझी”
मणि आर्य / विक्रम गोस्वामी
नई दिल्ली। 28 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सत्ता में वापसी होते ही दिल्ली के पहाड़गंज क्षेत्र में अवैध निर्माण का सिलसिला अचानक तेज हो गया है। क्षेत्र की लगभग हर गली और मोहल्ले में बिना किसी रोकटोक के बहुमंजिला इमारतें खड़ी की जा रही हैं, जिनमें से कई निर्माण कार्य आधी रात के बाद अंजाम दिए जाते हैं। विडंबना यह है कि पिछले दो वर्षों में दिल्ली नगर निगम (डीएमसी) अधिनियम के तहत एक भी ठोस कानूनी कार्यवाही इन अवैध निर्माणों पर नहीं की गई है। यह सवाल अब जनता के मन में गहराता जा रहा है कि आखिर क्या वजह है जो निगम की नजरें बार-बार पहाड़गंज पर क्यों चूक जाती हैं?
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह निर्माण कार्य केवल निजी मुनाफे के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक संरक्षण में हो रहे हैं। नागरिकों का आरोप है कि सत्ताधारी दल से जुड़े कुछ स्थानीय कार्यकर्ता खुद इन निर्माणों के पीछे हैं या इनसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से लाभ उठा रहे हैं। ऐसे में यदि मुख्यमंत्री या मेयर कोई कठोर कार्रवाई करने का प्रयास भी करें तो पार्टी की अंदरूनी राजनीति और स्थानीय स्तर पर बनते-बिगड़ते समीकरण उन्हें रोक देते हैं। जनता जानना चाहती है कि जब दिल्ली के अन्य हिस्सों में नगर निगम का बुलडोजर अवैध निर्माण पर गरज रहा है, तो पहाड़गंज में उसे कोई अनियमितता क्यों नहीं दिखती?
यह सवाल अब केवल मीडिया की सुर्खियों तक सीमित नहीं रहा बल्कि यह एक बड़ा प्रशासनिक और राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है। पहाड़गंज क्षेत्र, जो कि पर्यटन और व्यापार के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील इलाका माना जाता है, वहां इस तरह की अनियमितताएं न केवल शहरी योजना को चुनौती देती हैं, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न करती हैं। संकरी गलियों में खड़ी की जा रही बहुमंजिला इमारतें कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती हैं।
दिल्ली सरकार और नगर निगम की निष्क्रियता पर सवाल उठना लाजिमी है। यदि किसी क्षेत्र में कानून का पालन नहीं हो रहा और उस पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती, तो यह शासन व्यवस्था की गंभीर विफलता मानी जाएगी। कुछ जानकारों के अनुसार, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण राजनीतिक दबाव और संरक्षण बताया जा रहा है। सत्ता पक्ष के जन प्रतिनिधियों के प्रभाव में आकर प्रशासनिक अधिकारी मौन साध लेते हैं। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि नगर निगम के अधिकारी जानबूझकर रिपोर्ट दर्ज नहीं करते या शिकायतों पर कार्रवाई को लंबित रखते हैं।
दूसरा बड़ा कारण प्रशासनिक ढांचे की कमजोरियां हो सकती हैं। नगर निगम में स्टाफ की कमी, संसाधनों का अभाव, भ्रष्टाचार और जवाबदेही का अभाव इस स्थिति को और विकट बना देता है। तीसरा पहलू कानूनी जटिलताओं से जुड़ा है। डीएमसी एक्ट के तहत कार्रवाई की प्रक्रिया जटिल है और अदालतों के स्थगन आदेश (स्टे ऑर्डर) अक्सर इन मामलों को वर्षों तक लटका देते हैं।
इसके अतिरिक्त स्थानीय राजनीति का प्रभाव और इलाके में सक्रिय दबाव समूह भी इन अवैध निर्माणों को संरक्षण देते हैं। कई बार जनता खुद भी जागरूक नहीं होती या डर के मारे शिकायत दर्ज नहीं कराती। इससे न केवल प्रशासन को जिम्मेदारी से बचने का मौका मिल जाता है, बल्कि अवैध निर्माण करने वालों के हौसले और बुलंद हो जाते हैं।
ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि दिल्ली सरकार और नगर निगम सार्वजनिक रूप से इस मामले पर अपना पक्ष स्पष्ट करें और जांच प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए। यदि पहाड़गंज को ‘नो एक्शन ज़ोन’ बनाकर छोड़ दिया गया, तो आने वाले समय में यह एक बड़े शहरी संकट का केंद्र बन सकता है। जनता का विश्वास तभी बहाल होगा जब कानून सबके लिए समान रूप से लागू किया जाएगा। चाहे वह कोई आम नागरिक हो या सत्ता पक्ष का कार्यकर्ता। कानून का डर और प्रशासन की सक्रियता ही अवैध निर्माण जैसे घातक प्रवृत्तियों पर लगाम लगा सकती है।