मंदिर तोड़ा, मूर्ति हटाई, फ्लैट्स बना कर मंदिर की गरिमा धूमिल की, दिल्ली में खुलेआम हिन्दू धर्म का अपमान

मौन हैं हिन्दू संगठन आखिर क्यों ? बड़ा सवाल 

विक्रम गोस्वामी 

नई दिल्ली। दिल्ली की जमीनें अब न तो सुरक्षित हैं, न ही पवित्र स्थल। न केवल मास्टर प्लान और कानूनों को ध्वस्त किया जा रहा है, बल्कि अब आस्था के केंद्रों को भी भू-माफिया अपने निजी स्वार्थ के लिए रौंदने लगे हैं। पहाड़गंज के मुल्तानी ढांडा इलाके में गली नंबर 1, मकान संख्या 8952 पर जो हुआ है, वह केवल अतिक्रमण या अवैध निर्माण की कहानी नहीं, यह धार्मिक असहिष्णुता, प्रशासनिक मौन और सत्ता की चापलूसी की जीती-जागती तस्वीर है। यहां न सिर्फ मंदिर की दीवार को तोड़ा गया, बल्कि भगवान की मूर्ति को भी खुलेआम हटाया गया, अपमानित किया गया, और इस पवित्र स्थल की जगह अब ईंट-सीमेंट का अवैध ढांचा उगाया जा रहा है।

इस इलाके में स्थानीय लोग वर्षों से मंदिर में पूजा-अर्चना करते आ रहे थे। मंदिर सार्वजनिक स्थान पर नहीं बल्कि एक सामाजिक रूप से स्वीकृत धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता था। लेकिन हाल ही में, एक प्रभावशाली बिल्डर ने, जो पहले से ही इलाके में कई अवैध निर्माणों के मामलों में लिप्त पाया गया है, इस स्थान पर कब्जा कर लिया। आरोप है कि उसने न केवल मंदिर की संरचना को नुकसान पहुंचाया बल्कि भगवान की मूर्ति को भी हटा दिया, और वह भी दिनदहाड़े, कई लोगों की मौजूदगी में। यह घटना सिर्फ धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने वाली नहीं, बल्कि भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत अपराध है — जैसे कि धारा 295 (धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाना), 295A (धार्मिक भावनाओं का अपमान करना), और 153A (समुदायों के बीच शत्रुता फैलाना)।

स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किए जाने पर उन्हें धमकाया गया। कुछ लोगों को यह तक कहा गया कि अगर ज्यादा आवाज़ उठाई, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। जब पत्रकार मणि आर्य ने इस घटनाक्रम को उजागर किया, तो उनके खिलाफ भी पहले झूठी शिकायत की गई और फिर उन पर जानलेवा हमला किया गया। यह हमला साफ दर्शाता है कि ये भू-माफिया अब किसी कानून, पत्रकारिता या जनमत से डरते नहीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रशासन, पुलिस और स्थानीय नेताओं की चुप्पी उन्हें अघोषित संरक्षण दे रही है।

दिल्ली नगर निगम, जो आए दिन छोटी दुकानों और रेहड़ी वालों पर कार्यवाही करने का दम भरता है, वो इस गंभीर उल्लंघन पर पूरी तरह खामोश है। क्या एमसीडी को यह नहीं दिखता कि एक धार्मिक स्थल को गैरकानूनी तरीके से मिटा दिया गया है? क्या कोई भी इमारत जो मंदिर को गिराकर बनी हो, उसे वैध माना जा सकता है? स्थानीय पार्षद से लेकर विधानसभा के प्रतिनिधि तक, सब ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है। जब आम जनता अपने वोट से इन नेताओं को चुनती है, तो यही जनता इनकी जवाबदेही भी तय करती है। लेकिन जब प्रश्न धार्मिक अस्मिता और कानून व्यवस्था की रक्षा का आता है, तब सब मौन साध लेते हैं।

इस घटना ने स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश पैदा किया है। श्रद्धालुओं ने कई बार शिकायतें दी हैं, लेकिन किसी प्रकार की कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। उल्टा, पीड़ितों को ही पुलिस द्वारा थाने बुलाकर परेशान किया गया। शिकायतकर्ता बताते हैं कि जिस बिल्डर ने यह कृत्य किया है, उसका स्थानीय थाना, बिल्डिंग विभाग और कुछ मीडिया चैनलों से सांठगांठ है। यही कारण है कि उसके खिलाफ साक्ष्यों के बावजूद कोई गंभीर कार्यवाही नहीं होती।

कहना होगा कि यह सिर्फ एक मंदिर की बात नहीं है। यह धर्म, समाज और कानून की उस नींव पर हमला है जिस पर लोकतंत्र खड़ा होता है। अगर आज इस तरह भगवान की मूर्ति हटाकर वहां भवन निर्माण होता है और कोई कुछ नहीं बोलता, तो कल स्कूल, पार्क और श्मशान की जमीनें भी सुरक्षित नहीं रहेंगी। यह मामला सिर्फ आस्था का नहीं, कानून और संविधान की आत्मा का है। धार्मिक स्थल को छूना केवल बुलडोज़र नहीं, उस करोड़ों आस्थाओं को रौंदने जैसा है, जो भारत की पहचान हैं।

किसी धर्मस्थल का विध्वंस करना भारत के संविधान की धारा 25, 26 और 29 का सीधा उल्लंघन है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और संस्थानों की रक्षा की बात करता है। इसके अलावा दिल्ली स्पेशल लॉज़ एक्ट 2011 और मास्टर प्लान 2021 के तहत कोई भी निर्माण धार्मिक स्थल की जमीन पर नहीं हो सकता। यह मामला हाईकोर्ट की निगरानी में तुरंत लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्रशासनिक निकम्मेपन और कानून की सुप्रीमसी को ठेंगा दिखाने का स्पष्ट उदाहरण है।

अब सवाल सिर्फ यह नहीं कि मंदिर तोड़ा गया, बल्कि यह भी है कि क्या दिल्ली में अब आस्था की कोई कीमत नहीं रही? क्या बिल्डरों की सत्ता इतनी बढ़ गई है कि भगवान की मूर्ति भी उन्हें रोक नहीं सकती? क्या हमारा तंत्र अब इतना गिर चुका है कि सत्य के पक्ष में खड़े होने वाले पत्रकार को भी सुरक्षा नहीं दी जा सकती?

यह एक चेतावनी है। अगर अब भी प्रशासन, सरकार और समाज ने आँखें मूंदी रखीं, तो कल यह आग हर गली, हर मोहल्ले, हर धर्म और हर नागरिक तक पहुंचेगी। यह समय है—जागने का, विरोध करने का, और उन शक्तियों को चुनौती देने का जो सोचते हैं कि धन, डर और दुष्प्रचार से हर चीज खरीदी जा सकती है- यहां तक कि भगवान की जगह भी।

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