दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित आबकारी घोटाले से जुड़े मनीलॉन्ड्रिंग मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. जस्टिस नीना बंसल कृष्ण ने केजरीवाल और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से पेश वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.
हाईकोर्ट में बहस के दौरान सीबीआई ने केजरीवाल की तरफ से पेश अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों का विरोध किया और कहा, “वे कहते हैं कि एक बार चार्जशीट दाखिल हो होने के बाद व्यक्ति को सलाखों के पीछे नहीं रखना चाहिए… ये एक नेरेटिव बनाया गया है. अदालत उन्हें सलाखों के पीछे रख सकती है ताकि उसका मुकदमा कम से कम समय में पूरा हो सके.”
सीबीआई के वकील ने आगे कहा, “हालांकि, कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिनमें जमानत पर सीधे हाईकोर्ट सुनवाई कर सकता है, लेकिन हाईकोर्ट जमानत पर सुनवाई करने वाली पहली अदालत नहीं बन सकती. इस मामले में ये अंतिम आरोपपत्र है. हम ट्रायल शुरू करने के लिए तैयार हैं.”
फिर केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “मैंने पहले भी कहा था कि यह कुछ और नहीं बल्कि इंश्योरेंस गिरफ़्तारी है… ईडी मामले में तीन बार जमानत मिल चुकी है, किसी न किसी रूप में. जब से मुझे सीबीआई ने गिरफ़्तार किया है, तब से किसी गवाह से आमना-सामना नहीं कराया गया, कुछ भी नहीं हुआ है.”
सिंघवी ने एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 160 केवल गवाहों से संबंधित है और केजरीवाल को सीबीआई ने इसी प्रावधान के तहत पूछताछ के लिए बुलाया था. सिंघवी ने जज से कहा, “क्या आपने कभी ऐसा मामला देखा है, जहां 2023 में केजरीवाल को गवाह के तौर पर बुलाया जाए, उसके बाद कोई समन न हो, कुछ भी न हो और फिर 2024 में गिरफ्तार कर लिया जाए?”
सीबीआई ने मामले में केजरीवाल की जमानत याचिका का विरोध करते हुए उन्हें आबकारी घोटाले का ‘सूत्रधार’ बताया और कहा कि अगर उन्हें रिहा किया जाता है तो वह गवाहों के प्रभावित कर सकते हैं. सीबीआई की ओर से पेश अधिवक्ता डी.पी. सिंह ने कहा “उनकी गिरफ्तारी के बगैर जांच पूरी नहीं की जा सकती थी. हमने एक महीने के अंदर आरोप पत्र दायर किया.”