मदन मोहन भास्कर
हिण्डौन सिटी, करौली
भारत संस्कृति,परंपराओं, जाति और पंथ में विविधता वाला देश है। भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनका रहन-सहन, खानपान, रीति-रिवाज सबकुछ आम लोगों से अलग होता है। समाज की मुख्यधारा से कटे होने के कारण आदिवासी समाज आज भी पिछड़े हुए हैं। यही वजह है कि भारत समेत तमाम देशों में इनके उत्थान के लिए,इन्हें बढ़ावा देने और इनके अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार 1994 को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी वर्ष घोषित किया था। प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। आदिवासी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने तथा उनके योगदान और उपलब्धियों को स्वीकार करने के लिए इस दिन को ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रूप में पहचाना जाता है। इसे वर्ल्ड ट्राइबल डे के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने आदिवासियों के भले के लिए एक कार्यदल गठित किया था जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी। उसी के बाद से (UNO) ने अपने सदस्य देशों को प्रतिवर्ष 9 अगस्त को ‘विश्व आदिवासी दिवस’ मनाने की घोषणा की थी। आदिवासी शब्द दो शब्दों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है।
विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास
दिसंबर 1992 में, UNGA ने 1993 को विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष बनाने का संकल्प अपनाया । 23 दिसंबर 1994 को, UNGA ने अपने प्रस्ताव 49/214 में निर्णय लिया कि विश्व के आदिवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दशक के दौरान प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाएगा। यह तारीख 1982 में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर उप-आयोग के स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक के दिन को चिह्नित करती है। ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार यह बताया गया कि 2016 में लगभग 2680 ट्राइबल भाषाएं खतरे में थीं और विलुप्त होने की कगार पर थी इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने इन भाषाओं के बारे में लोगों को समझाने और जागरूकता फैलाने के लिए 2019 को आदिवासी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष नामित किया ।
आदिवासी आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाना
इस विशेष दिन का उद्देश्य दुनिया भर में आदिवासी आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है। विश्व के आदिवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस पहली बार दिसंबर 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा घोषित किया गया। 1982 में ये मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर उप-आयोग के स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक का दिन था। यह दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह पर्यावरण संरक्षण जैसे विश्व मुद्दों में सुधार के लिए आदिवासी लोगों की उपलब्धियों और योगदान को मान्यता देता है। यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार आदिवासी लोग दुनिया के सभी क्षेत्रों में रहते हैं और वैश्विक भूमि क्षेत्र के लगभग 22% हिस्से पर कब्जा होता है। दुनिया भर में कम से कम 370-500 मिलियन आदिवासी लोग 7 हजार भाषाओं और 5 हजार विभिन्न संस्कृतियों के साथ दुनिया की सांस्कृतिक विविधता के अधिक महत्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
आदिवासी प्रकृति पूजक होते है। वे प्रकृति में पाये जाने वाले सभी जीव, जंतु, पर्वत, नदियां, नाले, खेत इन सभी की पूजा करते है। उनका मानना होता है कि प्रकृति की हर एक वस्तु में जीवन होता है। आदिवासी झण्डें में सूरज, चांद, तारे आदि सभी प्रतीक विद्यमान होते हैं और ये झण्डे सभी रंग के हो सकते है। वो किसी रंग विशेष से बंधे हुये नहीं होते।आदिवासी समाज के लोग अपने धार्मिक स्थलों, खेतों, घरों आदि जगहों पर एक विशिष्ट प्रकार का झण्डा लगाते है, जो अन्य धर्मों के झण्डों से अलग होता है।