बिना किसी बीमारी या चेतावनी के लगातार अचानक युवाओं की मृत्यु क्यों हो रही है? क्या ये कोरोना के वैक्सीनेशन का दुष्परिणाम है? क्योंकि कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अब यह स्वीकार कर लिया है कि उनके इस वैक्सीन से ख़ून के थक्के जमने की संभावना होती है।
पिछले हफ्ते क्रिकेट खेलते एक युवा की अचानक मौत हो गई। अपने विदाई समारोह में कॉलेज में भाषण देते-देते एक 20 वर्ष की महिला अचानक मर गई। रामलीला में मंच पर हनुमान जी का किरदार निभाने वाले कलाकार की अचानक मंच पर ही मृत्यु हो गई। अपने विवाह में पति के गले में जयमाला डालते-डालते नववधू मर कर गिर गई।
कोविड के बाद से पूरे देश में ऐसी मौतों की बाढ़ सी आ गई है। जिन जागरूक डॉक्टर, वकील और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कोविशील्ड वैक्सीन की क्षमता पर संदेह किया था और ये आरोप लगाया था कि बिना सही परीक्षण किए जल्दबाजी में प्रशासनिक दबाव बना कर जिस तरह पूरे देश में कोविशील्ड का टीकाकरण किया गया इससे लोगों की जान को भारी खतरा पैदा हो गया। मुंबई उच्च न्यायालय के वकील निलेश ओझा ने कोविशील्ड कंपनी और भारत सरकार के विरुद्ध मुंबई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जनहित के मुकदमे करके वैक्सीन बनाने वाली कंपनी पर दबाव बनाया जिसके चलते इस कंपनी ने अपने वैक्सीन के दुष्परिणामों की संभावनाओं को अदालत में स्वीकार किया।
इससे यह सिद्ध हो गया कि ये वैक्सीन बिना परीक्षण पूरा किए ही जल्दबाज़ी में पूरे देश पर थोप दी गई। इन लोगों को और देश के तमाम जागरूक लोगों को इस बात से भारी नाराज़गी है कि भारत की मौजूदा सरकार, ऐसी अचानक हो रही मौतों की न तो संख्या जारी कर रही है और न ही उसके कारणों की जांच करवा रही है। यह बहुत चिंता की बात है। इसी समूह से जुड़ी डॉ. सुसन राज जो मध्य प्रदेश के राजनन्दगांव ज़िले में रहती हैं, उनका दावा है कि सारी मौतें कोरोना वैक्सीन के कारण ही हो रही हैं। डॉ. सुसन राज हर उस व्यक्ति को, जिसने ये टीका लगवाया था, चेतावनी दे रही हैं कि वे यथा शीघ्र अपने शरीर को ‘डिटॉक्स’ (विषमुक्त) कर लें जिससे वैक्सीन के संभावित दुष्परिणामों से बचा जा सके। ‘डिटॉक्स’ करने की ट्रेनिंग वो ज़ूम कॉल पर दुनिया भर के हज़ारों लोगों को दे चुकी हैं। उनकी यह प्रक्रिया इतनी सरल है कि कोई भी व्यक्ति देश-दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न बैठा हो वो ख़ुद को विषमुक्त करने का तरीका सीख सकता है। ये तकनीक बहुत सरल है और घर बैठे अपना ट्रीटमेंट किया जा सकता है।
मेरे ही परिवार में मुझ समेत कई लोगों को ऐसी बीमारियां हो गई हैं जिनका कोई कारण समझ में नहीं आता। क्योंकि हम सब एक संतुलित शाकाहारी सात्विक जीवन जीते हैं। हालांकि एक पक्ष ऐसा भी है जो मानता है कि इन मौतों और बीमारियों का वैक्सीन से कोई लेना-देना नहीं है। पर ये पक्ष इन मौतों और अचानक पनप रही इन बीमारियों का कारण बताने में असमर्थ हैं। इसलिए डॉ. सुसन सबको सलाह देती हैं कि वे अपने शरीर को वैक्सीन के विष से मुक्त कर लें और स्वस्थ जीवन जियें। डॉ. सुसन के अनुसार हमारी कोशिकाएं सात तरीकों से खुद को डिटॉक्स करती हैं। पांच रासायनिक डिटॉक्स हैं, एक यांत्रिक डिटॉक्स है और एक विद्युत डिटॉक्स है।
एंटीऑक्सीडेंट भोजन, जड़ी-बूटियां और तेल हैं जिनमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, कार्ब्स और वसा होते हैं। ये वस्तुएं कोशिका संरचना का निर्माण करके डिटॉक्स करती हैं। एंडोक्राइन स्राव को मन की शक्ति द्वारा प्रबंधित किया जाता है जो विचारों में परिवर्तित होने वाली सूचनाओं और फिर सकारात्मक भावनाओं से जुड़कर अच्छा महसूस कराने वाले न्यूरोट्रांसमीटर का उत्पादन करके बनाया जाता है, जो 90 बीमारियों को ठीक कर सकता है। ऑटोफैगी स्वयं खाने का उपयोग करके डिटॉक्स करता है। यह उपवास में होता है। यहां वह डिटॉक्स है जिसे एकीकृत सेलुलर डिटॉक्स थैरेपी में जोड़ा जाता है।
गौरतलब है कि आजकल के आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में हमारा मन और शरीर अक्सर तनाव, नकारात्मकता और अनावश्यक बोझ से भर जाता है। ‘सेल्फ डिटॉक्स’ एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से शुद्ध करने में मदद करती है। यह न केवल हमें तरोताजा करती है, बल्कि जीवन में स्पष्टता और संतुलन भी लाती है। सेल्फ डिटॉक्स की शुरुआत शरीर से होनी चाहिए। इसके लिए संतुलित आहार, पर्याप्त पानी का सेवन और नियमित व्यायाम जरूरी है। जंक फूड, शराब और कैफीन से दूरी बनाकर शरीर को हल्का और ऊर्जावान बनाया जा सकता है। प्राकृतिक खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां और साबुत अनाज शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं। योग और प्राणायाम भी शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं।
हमारा दिमाग सोशल मीडिया, नकारात्मक खबरों और अनावश्यक विचारों से भरा रहता है। मानसिक डिटॉक्स के लिए ध्यान और माइंडफुलनेस का अभ्यास प्रभावी है। रोजाना कुछ समय शांत बैठकर अपने विचारों को व्यवस्थित करें। अनावश्यक जानकारी से दूरी बनाएं और सकारात्मक किताबें पढ़ें। डिजिटल डिटॉक्स, यानी फोन और इंटरनेट से ब्रेक लेना भी मानसिक शांति देता है। नकारात्मक भावनाएं जैसे गुस्सा, ईर्ष्या या दुख हमें कमजोर बनाती हैं। इनसे मुक्ति के लिए आत्म-चिंतन उपयोगी हैं। अपनी भावनाओं को स्वीकार करें और उन्हें व्यक्त करने का स्वस्थ तरीका ढूंढें। अपनों के साथ समय बिताएं और कृतज्ञता का अभ्यास करें। इन तमाम तरीकों से हम अपने शरीर से कोरोना वैक्सीन के कारण उत्पन्न विष को निकाल सकते हैं और इसके संभावित दुष्परिणामों से बच सकते हैं। डॉ. सुसन राज हों या समाज के अन्य जागरूक लोग, हमें ऐसा करने की सलाह दे रहे हैं। हम माने या न मानें ये हम पर निर्भर है।
सौ पर्दाप्लश