17 सालों से जेल में कैद है कैदी, जबकि उसके अपराध की अधिकतम सजा 7 साल की है.

छत्तीसगढ़ के कैदी कहानी ने सुप्रीम कोर्ट को भी हिलाकर रख दिया. करीम नाम का एक कैदी है, जो 17 साल से किसी अपराध की सजा काट रहा है. जब सीनियर वकील विजय हंसरिया को उनके बारे में पता चली तो वह हक्के-बक्के रह गए और उन्होंने कैदी की ओर से शीर्ष न्यायलय में याचिका फाइल करते हुए लिखा, ‘ये 10 साल लेट हैं, यानी की सजा पूरा हुए 10 साल हो गए हैं.’

हंसरीया ने अप्रैल में अपने मुवक्किल करीमन की ओर से शीर्ष कोर्ट में याचिका फाइल की थी. उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल 17 सालों से जेल में कैद है, जबकि उसके अपराध की अधिकतम सजा 7 साल की है. वह उचित लीगल सहायता न मिलने की वजह से जेल की चारदीवारी में कैद रहे. उन्होंने कहा कि करीमन को पील करने जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित कर दिया गया था.
हंसारिया ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘वह 10 साल जेल में ज्यादा बिताया क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि अपील दायर की जा सकती है. मुझे एहसास हुआ कि यहां एक बड़ा मुद्दा है.’ करीमन की रिहाई का निर्देश देते हुए, जस्टिस बी आर गवई और संदीप मेहता की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हंसारिया को एमिकस क्यूरी (अदालत का मित्र) नियुक्त किया ताकि यह मूल्यांकन किया जा सके कि देश भर की जेलों में बंद 1.5 लाख से अधिक दोषियों को कानूनी प्रतिनिधित्व मिल रहा है या नहीं?

शीर्ष कोर्ट द्वारा अदालत का मित्र नियुक्त किये जाने के बाद से हंसरिया एक प्रोफार्मा तैयार किया है. इसके मदद से मई से राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए), प्रमुख विधिक सहायता निकाय की देखरेख में विधिक सहायता वकील 18 राज्यों में 15,000 से अधिक दोषियों से मिल चुके हैं. इनमें वे भी कैदी है जो 7-10 साल या आजीवन कारावास या फिर मौत की सजा काट रहे हैं. इस प्रोफार्मा में यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि जानकारी के आभाव प्रतिनिधित्व की कमी के कारण कैदियों को जेल में न रहना पड़े.

सुप्रीम कोर्ट में 15 जुलाई सुनवाई के दौरान एनएएलएसए ने अपने सबमिशन के बारे में बताया कि 18 राज्यों के 870 दोषियों विधिक सहायता से अपील दायर करने पर सहमति व्यक्त की. कोर्ट ने भी निर्देश दिया कि इन मामलों में अपील दायर की जाए, हालांकि, लगभग 675 दोषियों ने अपील दायर नहीं करने का विकल्प चुना.

जब कोर्ट ने एनएएलएसए की ओर से पेश अधिवक्ता रश्मि नंदकुमार से अपील दायर करने से मना करने वाले 675 दोषियों के इंकार करने के बारे में पूछा. नंदकुमार ने कोर्ट को 4 कारण गिनवाए-
पहला- वे पहले ही अधिकतम सजा काट चुके हैं या अपनी सजा लगभग पूरी कर चुके हैं.
दूसरा- उन्हें अपील करके अपना नाम साफ करने का कोई कारण नहीं दिखता है.
तीसरा- नकी अपील उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई थी और उन्हें अनुकूल फैसले की उम्मीद नहीं थी.
चौथा- गरीबी

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