मोबाइल गेम्स बच्चों को बना रहे हैं हिंसक

आजकल बड़ों के साथ बच्चों में भी मोबाइल की लत देखने को मिलती है। खासतौर से कोरोना काल से स्कूली बच्चों में इसकी लत ज्यादा बढ़ गई है। बच्चे सिर्फ मोबाइल पर पढ़ाई ही नहीं करते बल्कि उनको मोबाइल पर गेम खेलने का भी शौक है।

लेकिन बच्चों में मोबाइल की बढ़ती सहज उपलब्धता समय के साथ भयानक रूप लेती जा रही है। मोबाइल पर गेम खेलने की लत बच्चों को हिंसक बना रही है। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें मोबाइल की वजह से बच्चों ने सुसाइड कर लिया या परिवार के ही किसी व्यक्ति की हत्या कर दी।

इस तरह के गेम्स बच्चों को बना रहे हिंसक
कई बच्चों में पबजी नामक मोबाइल गेम का लत देखने को मिलती है। इससे पहले ब्लू व्हेल जैसे गेम्स के कारण भी कई जानलेवा मामले सामने आ चुके हैं। पबजी और ब्लू व्हेल को तो कई देशों ने बैन तक कर दिया है। इसी तरह के और भी कई गेम्स हैं, जिन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से आक्रामक प्रवृत्ति विकसित करने वाला माना जाता है, इतना आक्रामक कि बच्चा किसी की जान तक ले लें।

चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाते हैं बच्चे
मोबाइल गेम्स बच्चों के स्वभाव को आपराधिक और गुस्सैल बना रहे हैं। बता दें कि आजकल मारपीट, गोलीबारी वाले जैसे कई गेम्स आ रहे हैं। जब बच्चे इस तरह के गेम्स खेलते हैं तो उन पर मानसिक प्रभाव पड़ता है। वे धीरे—धीरे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाते हैं। जब बच्चों को मोबाइल गेम नहीं खेले दिया जाता तो वे हिंसक तक हो जाते हैं।

पीएमसी जर्नल में साल 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि पबजी की लत, हत्या और आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि किशोरों और वयस्कों में मनोवैज्ञानिक पूर्वाग्रह की स्थिति हो सकती है। इस तरह के वीडियोगेम्स पर दिन में कई घंटे बिताना मस्तिष्क की प्रवृत्ति को इस खेल के रूप में परिवर्तित करती जाती है। पबजी जैसे गेम्स आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं ऐसे में इसकी लत गंभीर हो सकती है।

दिमाग पर होता है ऐसा असर
मोबाइल गेम्स के कारण बढ़ते आक्रामक व्यवहार के बारे में मनोचिकित्सकों का कहना है कि बालपन-युवावस्था में हम जिस तरह की चीजों को अधिक देखते, सुनते और पढ़ते हैं, उसका दिमाग पर सीधा असर होता है। पबजी जैसे गेम्स के साथ भी यही मामला है। ये लत का कारण बन जाते हैं और एडिक्शन के कोर में व्यावहारिक परिवर्तन प्रमुख होता है। अगर घरवाले इसे अचानक से छुड़ाने की कोशिश करते हैं, तो यहां विड्रॉल की स्थिति में आ जाती है, उसी तरह जैसे अल्कोहल विड्रॉल होता है जिसमें अगर किसी शराबी से अचानक शराब छुड़वाई जाए तो उसके व्यवहार में आक्रामक परिवर्तन हो सकता है।

साथ मनोचिकित्सकों का मानना है कि बच्चे में ‘ऑब्जर्वेशन लर्निंग’ की क्षमता अधिक होती है। बच्चे स्वाभाविक रूप से किसी चीज को समझने से ज्यादा चीजों को देखकर सीखने में अधिक निपुणता वाले होते हैं। ऐसे में अगर बच्चे का समय मोबाइल फोन्स पर अधिक बीत रहा है, साथ ही वह पबजी जैसे गेम्स पर अधिक समय बिता रहे हैं तो इसका सीधा असर मस्तिष्क को प्रभावित करता है। गेम खेलते समय बच्चों का पूरा ध्यान टास्क पर होता है। ऐसे में अगर इसकी प्रवृत्ति हिंसात्मक, मार-पीट, गोली-बारी वाली है तो यह बच्चे के दिमाग को उसी के अनुरूप परिवर्तित करने लगती है।

थोड़े आराम के चक्कर में बच्चों के भविष्य से न खेलें
बच्चों में मोबाइल की लत के लिए माता-पिता काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं। माता-पिता थोड़ा आराम करने के चक्कर में बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं। यह बच्चों की धीरे-धीरे लत बनती जाती है, ऐसी लत जिसके बिना बच्चे रह ही नहीं पाते। मोबाइल ने बच्चों की सहज प्रकृति को जैसे खत्म सा कर दिया है। हमने अपने थोड़े से आराम के चक्कर में बच्चों से उनके बचपन को छीन लिया है, इसके नतीजे आए दिन सामने आते रहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *