विशेष संवाददाता
*नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि किसी अवैध निर्माण की अनुमति देने वाले सरकारी अधिकारियों पर न केवल विभागीय कार्रवाई होगी, बल्कि उन पर संबंधित कानूनों के अंतर्गत आपराधिक मुकदमा भी चलेगा। इतना ही नहीं, यदि मामला सुप्रीम कोर्ट के किसी पूर्व आदेश का उल्लंघन है, तो उस अधिकारी पर अवमानना का भी केस दर्ज किया जाएगा*।
ऐसे ही कई मामले दिल्ली के पहाड़ गंज के है जहा डीएमसी एक्ट के सभी नियमों को ताक पर रख कर अवैध निर्माण जोरो पर चल रहे हैं। सबसे हैरानी की बात तो ये है कि पिछले 10 महीनों में पहाड़ गंज में एक भी अवैध निर्माण को करोल बाग जोन के बिल्डिंग डिपार्टमेंट ने वर्क स्टॉप नोटिस, शो कोज़ नोटिस तक जारी नहीं किया है , ना ही इन अवैध निर्माणों को बुक किया है। डेमोलिशन ऑर्डर्स, सीलिंग नोटिस की बात तो कही दूर दूर तक सामने नहीं आई है। ऐसा ही ताज़ा मामला दिल्ली पहाड़ गंज स्थित 4196, गली भगवती तेल मंडी का है जहां MCD की ऑनलाइन सर्विस का फायदा उठाते हुए सरल स्कीम के तहत ऑनलाइन आवेदन देकर घरेलू नक्शे की फीस जमा करा दी गई लेकिन बनाया गया है होटल और जहां पार्किंग स्थल होना चाहिए था वहां बनाया गया है होटल का रिसेप्शन ? ऐसा में ये सवाल ये उठता है कि ये सरल स्कीम के तहत ये नक्शा वैध कैसे हो गया। वही ऐसे ही प्रॉपर्टी नंबर 8421आर्य नगर पहाड़ गंज नई दिल्ली में सभी नियमों को ताक पर रख कर अवैध रूप दिल्ली सरकार की स्कीम बेड एंड ब्रेकफास्ट के नाम पर अवैध होटल ब्ल्यू बेल्स बना दिया गया और नीचे पार्किंग स्थल पर पार्किंग के स्थान पर शटर लगाकर दुकानें बना दी गई हैं और उनमें से एक दुकान गत्तों से भरा गोदाम है। जो कि अवैध है। ऊपर पहली मंजिल पर रिसेप्शन बनाया गया है जो कि मात्र 4 फुट का एक संकरा रास्ता संकरी सीढ़ियों से होकर ऊपर प्रथम तल पर जाता है ,अगर ऐसे में कोई आग लगने की घटना होती है तो ऊपर बने अवैध होटल और आस पास के घर जलकर खास हो जायेगे और सैकड़ों लोगों की जान जा सकती है ऐसे में जिम्मेदार कौन होगा। वही बात करे 8928, गली नंबर 1 मुल्तानी ढांडा पहाड़ गंज की यह भी डीएमसी एक्ट और दिल्ली सरकार के सभी नियमों को ताक पर रखकर अवैध निर्माण कर होटल बना दिया गया । यहां भी मात्र 4 फुट का एक मात्र संकरा रास्ता है जो कि सीढ़ियों से होते हुए ऊपर प्रथम तल पर बने रिसेप्शन से होता हुआ अंदर बने अवैध कमरों में जाता है और नीचे भू तल पर पार्किंग स्थल के स्थान पर शीशे की दुकानें शटर लगाकर बना दी गई है। लेकिन इस अवैध निर्माण पर भी अब तक डीएमसी एक्ट के तहत बिल्डिंग डिपार्टमेंट करोल बाग जोन की ओर से कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की गई है। वही 1669/18 , बाराही माता मंदिर, मैंन चित्र गुप्ता रोड पहाड़ गंज में भी भू माफिया द्वारा मंदिर की जमीन कब्जा कर अवैध निर्माण कर बहुमंजिला फ्लैट्स और नीचे भू तल पर पार्किंग स्थल के स्थान पर शटर लगाकर अवैध दुकानें बना दी गई हैं लेकिन यहां भी बिल्डिंग डिपार्टमेंट करोल बाग जोन की ओर से अब तक डीएमसी एक्ट के तहत कोई ठोस कानूनी कार्यवाही नहीं की गई है , ऐसे ही कितने अवैध निर्माण दिल्ली के पहाड़ गंज में बिल्डिंग डिपार्टमेंट करोल बाग जोन की आपसी मिलीभगत से अभी भी जारी है लेकिन फिर भी माननीय न्यायालय ने इस मामले में कार्यवाही करते हुए भू माफिया और स्वयंभू भू स्वामी के विरुद्ध एक्ट पार्टी ऑर्डर्स कर भू माफिया की 7/11 की पिटिशन डिजमिस कर दी है और आगे की कानूनी कार्यवाही की जा रही है। वही बात करे पहाड़ गंज के नबी करीम के पार्क की तो उस पार्क को भी भू माफिया ने नहीं छोड़ा । 6968, कुर्सी मार्केट पहाड़ गंज नबी करीम 10 नबर गली के पास एक सार्वजनिक पार्क पर कब्जा कर भू माफिया ने अवैध निर्माण कर बहुमंजिला इमारत खड़ी कर दी और नीचे भू तल पर अवैध रूप से बिल्डिंग मैटीरियल का काम कर सड़क पर भी ईंटों रेत गारे का अम्बर लगा दिया है जिससे लोगों को आने जाने के काफी परेशानी उठानी पड़ती है और तो और आने जाने का ट्रैफिक भी बाधित होता है ,जो कि मास्टर प्लान 2021 की अवहेलना है कि सड़क किनारे कोई भी बिल्डिंग मैट्रियल का काम नहीं किया जा सकता।इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी, पब्लिक ग्रीवांस कमीशन ने भी MCD कमिश्नर दिल्ली को लिखित डायरेक्शन देकर कानूनी कार्यवाही करने के लिए कहा लेकिन डिप्टी कमिश्नर सिटी पहाड़ गंज जोन की और से अब तक कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई लेकिन गौर करने की बात ये है कि उपरोक्त सभी अवैध निर्माण एक भी भू माफिया के है जिन पर पूर्ण कानूनी कार्यवाही ना होना भू माफिया और बिल्डिंग डिपार्टमेंट करोल बाग जोन की आपसी मिलीभगत साफ दर्शाता है और MCD पर एक सवालिया निशान है ? अब देखना ये है कि क्या उपरोक्त अवैध निर्माणों पर और आरोपित बिल्डिंग डिपार्टमेंट के अधिकारियों पर क्या माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर क्या कोई कानूनी कार्यवाही होगी भी या नहीं ?
लेकिन आपको बता दे पहाड़ गंज स्थित उपरोक्त सभी अवैध निर्माण / अवैध होटल/ अवैध एयर बेड एंड ब्रेकफास्ट स्कीम के तहत चलने वाले भू खंडों पर दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस कमिश्नर, पब्लिक ग्रीवांस कमीशन, दिल्ली नगर निगम की विजिलेंस ने समाज सेवी की शिकायत और समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों को संज्ञान में लेने हुए सभी अवैध निर्माणों के विरुद्ध जांच कर कानूनी कार्यवाही के लिखित आदेश जारी किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का उद्देश्य देशभर में बढ़ते अवैध निर्माण को रोकना और उसे संरक्षण देने वाले सरकारी तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित करना है। अदालत का कहना है कि जब एक अधिकारी के कार्यकाल में अवैध निर्माण होता है और वह उस पर न तो कार्रवाई करता है, न ही रिपोर्ट करता है, तो यह स्पष्ट रूप से उसकी मिलीभगत या लापरवाही को दर्शाता है। ऐसे मामलों में केवल विभागीय जांच काफी नहीं है; संबंधित अधिकारी पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए, ताकि व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।
दिल्ली, जो देश की राजधानी है और जहां सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट दोनों स्थित हैं, वहां की स्थिति बेहद चिंताजनक है। दूसरी तस्वीर जो सामने आ रही है, वह बताती है कि यहां अवैध निर्माण को बचाने के लिए न केवल फर्जी सीलिंग की जा रही है, बल्कि नगर निगम (एमसीडी) के कुछ उच्च अधिकारी घूस लेकर खुद इन निर्माणों को करवाने में लगे हैं। जब नागरिक इन मामलों की शिकायत करते हैं तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इसके विपरीत, शिकायत करने वालों को ही परेशान किया जाता है और भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने की पूरी कोशिश की जाती है।
ऐसे मामलों में एमसीडी, दिल्ली पुलिस और अन्य सम्बंधित विभागों की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ जाती है। जब सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट निर्देश दे चुका है कि अवैध निर्माणों पर न केवल रोक लगे, बल्कि जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई हो, तो फिर राजधानी में इस प्रकार की स्थिति कैसे बनी हुई है? क्या ये संस्थान जानबूझ कर अदालत के आदेशों की अवमानना कर रहे हैं?
यह सवाल केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। अगर राजधानी का यह हाल है, तो देश के अन्य राज्यों और छोटे शहरों की स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। जहां न तो मीडिया की पैनी निगाह है, न ही अदालतों की इतनी सख्त निगरानी, वहां यह भ्रष्टाचार और अधिक गहराई से जड़ें जमा चुका होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उम्मीद की जा सकती है कि अब व्यवस्था में थोड़ी सख्ती आएगी। जिन अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग कर अवैध निर्माण को बढ़ावा दिया है, उन पर अब कानून का शिकंजा कसेगा। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि न्यायालय के आदेशों का पालन केवल कागजों तक सीमित न रहे, बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी सख्ती से अमल हो।
इसके अलावा, नागरिकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे इन अवैध गतिविधियों के खिलाफ आवाज़ उठाएं और कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, प्रशासन पर पारदर्शी कार्यवाही के लिए दबाव बनाएं। केवल अदालत के फैसलों से ही बदलाव नहीं आता, जब तक जनता और प्रशासन दोनों मिलकर उसका पालन न करें।