विक्रम गोस्वामी
नई दिल्ली। पहाड़गंज में अवैध निर्माण कोई नया विषय नहीं है, लेकिन जब यह निर्माण खुलेआम, प्रशासन और कानून को धता बताते हुए होता है, तो सवाल सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं, व्यवस्था के पूरी तरह चरमराने का होता है। राजधानी दिल्ली के पहाड़गंज क्षेत्र के मुल्तानी ढांडा इलाके में प्रॉपर्टी संख्या – 8928, गली नंबर एक पर जिस तरह एक बिल्डर आर बी एंड बी जैसी स्कीम के नाम पर गैरकानूनी होटल बना रहा है, वह दिल्ली मास्टर प्लान, एमसीडी अधिनियम, फायर सेफ्टी कोड और भवन निर्माण नियमों की सरासर अवहेलना है। स्थानीय लोग महीनों से शिकायत कर रहे हैं, मगर अब तक न तो नगर निगम ने कोई प्रभावी कार्यवाही की है, न पुलिस ने इसे गंभीरता से लिया है।
यह भवन, जो कि एक संकरी और घनी बस्ती की गली में स्थित है, वहां बिना किसी नक्शे की स्वीकृति के 5 मंजिलों का निर्माण किया गया है। ऊपर से इसमें होटल संचालन की तैयारी की जा रही है और दावा किया जा रहा है कि यह आर बी एंड बी यानि होमस्टे के अंतर्गत है। जबकि वास्तविकता यह है कि आर बी एंड बी केवल अस्थायी रूप से पर्यटकों को निवास सुविधा देने के लिए है, न कि एक होटल चलाने का लाइसेंस। इस गली में न अग्निशमन वाहन प्रवेश कर सकते हैं, न किसी आपदा की स्थिति में सुरक्षा के कोई प्रबंध हैं। किसी भी कोने पर आप फायर एग्जिट नहीं देखेंगे, प्रथम स्थान पर होटल का रिसेप्शन बनाया गया है। न सीसीटीवी फुटेज की व्यवस्था है, न बिल्डिंग में किसी लाइसेंस बोर्ड का चिह्न। और ऊपर से नीचे पार्किंग स्थल के स्थान पर शीशे की दुकानें खोली गई हैं। सबसे बड़ी बात की बेड एंड ब्रेकफास्ट स्कीम के तहत आपको अपने परिवार के साथ बने भवन में रहना होता है लेकिन भू माफिया रहता पहाड़ गंज से 15 किलोमीटर दूर अशोक विहार में रहता है। स्कीम के तहत मात्र 6 कमरे बनाने की अनुमति है लेकिन बिल्डर से 12 कमरे बना दिए हैं। ऐसे में उपरोक्त भवन को वद्य कैसे माना जा सकता है। क्या पूरा प्रशासन , टूरिज्म विभाग इस बिल्डर के आगे बेबस है या फिर आपसी मिलीभगत। ये जांच का विषय है
निगम से प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली मास्टर प्लान 2021 में रिहायशी इलाकों में होटल या गेस्ट हाउस खोलने के लिए विशेष मंजूरी आवश्यक है। इसके लिए न केवल ज़ोनल कन्वर्ज़न चार्जेस चुकाने होते हैं, बल्कि अग्निशमन विभाग, स्वास्थ्य विभाग, ट्रैफिक पुलिस, और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) से भी मंजूरी लेनी होती है। सबसे ज़रूरी बात यह है कि होटल या गेस्ट हाउस की अनुमति उन्हीं भवनों में दी जाती है, जो भवन निर्माण उपविधियों के अनुरूप हैं, जिनमें पर्याप्त पार्किंग, अग्निशमन निकास, सीवरेज और वेंटिलेशन जैसी मूलभूत सुविधाएं हों। प्रॉपर्टी संख्या -8928 गली नंबर एक में कोई भी ऐसा प्रावधान नहीं है।
यह निर्माण न केवल कानून का मजाक है, बल्कि यह सीधे तौर पर जनता के जान-माल की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। इलाके के स्थानीय नागरिकों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन उन्हें धमकियां मिलीं। एक महिला ने यहां तक कहा कि जब उन्होंने निर्माण को लेकर आपत्ति की, तो उनके घर की फोटो खींची गई और अप्रत्यक्ष रूप से धमकाया गया। कई स्थानीय निवासियों ने बताया कि बिल्डर ने कथित यूट्यूब पत्रकारों को पैसे देकर झूठी खबरें प्रसारित करवाईं कि वह एक वैध वरिष्ठ पत्रकार हैं और अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता के चलते कई अवार्डों से सम्मानित है और जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वे अवैध कब्जाधारी हैं। इस पूरे प्रकरण में बिलकुल फ़र्ज़ी कथित डिजिटल मीडिया और यूट्यूब चैनलों की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ चुकी है। वे बिना किसी वैधानिक पहचान अथवा प्रमाण के झूठा प्रचार कर रहे हैं।
भारत में पत्रकार होने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता आवश्यक होती है। यूट्यूब चैनल चलाने वाला कोई भी व्यक्ति अपने आपको “पत्रकार” घोषित नहीं कर सकता। ऐसे मामलों में इन लोगों द्वारा झूठे वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार करना और जनता को गुमराह करना एक गंभीर अपराध है। IPC की धारा 499, 500, और IT Act की धाराओं के तहत इनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए।
इस बिल्डर पर पहले भी विभिन्न गंभीर आरोप लग चुके हैं। बाराही माता मंदिर विवाद में इसके खिलाफ कोर्ट के एक्स पार्टी के आदेश जारी हो चुके हैं। इसकी 7/11 रिपोर्ट को एमसीडी द्वारा खारिज किया जा चुका है। इस पर पहले भी नबी करीम थाने में एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। इतना ही नहीं, बिजली विभाग (BSES) ने भी इसके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाई है। स्पेशल टास्क फोर्स और सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी ने भी इस इलाके के अवैध निर्माणों पर कार्यवाही के निर्देश दिए हैं, लेकिन कार्यान्वयन शून्य के बराबर है। यह बिल्डर सड़क किनारे पार्क की जमीन पर कब्जा कर अवैध रूप से बिल्डिंग मैटीरियल का धंधा भी चला रहा है, जो मास्टर प्लान 2021 के तहत प्रतिबंधित गतिविधि है। दिल्ली जल बोर्ड की ठेकेदारी में भी यह व्यक्ति हेराफेरी करते पकड़ा गया था और उसे बाहर निकाल दिया गया। साथ ही इस भू माफिया की कोर्ट का समय बर्बाद की आदत बन चुकी है। ये जिसकी भी बिल्डिंग बनाता है या फिर जो इसकी दुकान से बिल्डिंग मैटीरियल खरीदता है उसी व्यक्ति को डराकर अवैध वसूली करने के लिए कोर्ट में झूठा केस डाल देता है। वकीलों से नोटिस भिजवा देता है। जिससे लोग डर जाए। ऐसे भी माफिया पर कोर्ट सही जांच कर इसे प्रतिबंधित कर जुर्माना लगाकर सख्त कानूनी कार्यवाही करे।
इतने सबूतों और शिकायतों के बावजूद अगर दिल्ली नगर निगम, स्थानीय थाना, फायर डिपार्टमेंट और शहरी विकास मंत्रालय, दिल्ली टूरिज्म विभाग आंखें बंद करके बैठे हैं, तो यह प्रशासनिक उदासीनता नहीं बल्कि मिलीभगत का प्रमाण है। अगर किसी पत्रकार ने इसके खिलाफ खबर चलाई तो उसे धमकियां दी गईं। मणि आर्य जैसे पत्रकार को पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद जानलेवा हमला झेलना पड़ा। फिर भी न तो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की गई, न हमलावरों पर कोई गिरफ्तारी हुई। यह दर्शाता है कि बिल्डरों, भू-माफियाओं और कथित यूट्यूब चैनलों की एक ऐसी मिलीभगत पैदा हो चुकी है जो लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनता की सुरक्षा – तीनों पर सीधा हमला है।
अब समय आ गया है कि इस तरह के अवैध निर्माण, फर्जी मीडिया दुष्प्रचार और प्रशासनिक मौन के खिलाफ जनता एकजुट होकर आवाज़ उठाए। यह मामला सिर्फ एक बिल्डिंग या एक होटल का नहीं, बल्कि एक पूरे सिस्टम की नाकामी का आईना है। दिल्ली जैसे महानगर में अगर इस तरह खुलेआम कानून का मखौल उड़ाया जाएगा, तो फिर बाकी शहरों और कस्बों में क्या उम्मीद की जा सकती है? अब फैसला जनता को करना है – कि वह डर के साए में जाएगी, या कानून की रक्षा में खड़ी होगी।