बिल्डर माफिया के सामने घुटनों पर निगम, पहाड़ गंज की पहचान पर संकट

क्राइम हिलोरे न्यूज़ नेटवर्क 

नई दिल्ली। दिल्ली का ऐतिहासिक और व्यावसायिक इलाका पहाड़ गंज आज जिस संकट से गुजर रहा है, वह केवल एक स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि पूरे शहरी तंत्र के चरमराने की एक गंभीर चेतावनी है। गली नंबर 8, चुना मंडी में हाल ही में जो दृश्य सामने आया, उसने यह साफ कर दिया कि बिल्डर माफिया की ताकत अब कानून और प्रशासन दोनों से ऊपर जा चुकी है। वर्षों पुराना सार्वजनिक सुलभ शौचालय, जो न केवल इस क्षेत्र की ज़रूरत थी बल्कि हज़ारों राहगीरों और स्थानीय दुकानदारों की सुविधा का आधार भी, उसे दिनदहाड़े भंडारे के नाम पर टेंट लगाकर ढहा दिया गया। प्रशासनिक चुप्पी और निगम की आंखों पर बंधी काली पट्टी ने यह साबित कर दिया कि पैसों के सामने अब जनहित की कोई कीमत नहीं बची है।

वरिष्ठ महामंत्री भाजपा पहाड़गंज मंडल रोकी भारद्वाज की माने तो यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है जिसमें नगर निगम के कुछ अधिकारी और बेलदार भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। यह सवाल अब हर जिम्मेदार नागरिक को झकझोर रहा है कि आखिर क्या कारण है कि वर्षों से एक ही जगह पर जमे हुए बेलदारों का ट्रांसफर नहीं होता? क्या वे किसी अदृश्य गठजोड़ का हिस्सा बन चुके हैं? क्या यह बेलदार अब कानून के रक्षक नहीं बल्कि बिल्डर माफिया के ‘सहयोगी’ बन चुके हैं? वही RWA, घी मंडी पहाड़ गंज के अध्यक्ष अजीत का कहना है कि निगम और प्रशासन अपनी आँखें बंद किए बैठा है क्योंकि बिल्डर माफिया मोटी रकम जो देता है।पहाड़ गंज में बिल्डर माफिया का आतंक दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।आज पहाड़ गंज में भू माफियाओं की नजर हर पुरानी बिल्डिंग्स पर , पार्कों पर ,सरकारी जमीनों पर है। स्थानीय लोगों को हर तरह से धमकाया जा रहा है। ऐसे में पहाड़ गंज के निवासी अपने परिवार के साथ पहाड़ गंज में कैसे रहे।

दिल्ली जैसे महानगर में, जहां हर इंच ज़मीन की कीमत करोड़ों में आंकी जाती है, वहां बिल्डर माफिया की नजरें उन जर्जर इमारतों पर टिकी हैं, जो दशकों से लोगों के बसेरे और व्यापार का आधार रही हैं। बिना किसी मानवीयता के, ये माफिया सस्ते दामों में मकान खरीदते हैं, वहां रहने वाले परिवारों और दुकानदारों को धमकाते हैं, उन पर मानसिक दबाव बनाते हैं, और अंततः मजबूरन उन्हें अपनी जगह छोड़ने पर विवश करते हैं। इसके बाद वही संपत्ति मोटी रकम पर किसी और बिल्डर को बेच दी जाती है। यह एक चलती-फिरती ‘रियल एस्टेट सिंडिकेट’ बन चुका है, जिसमें आम आदमी केवल शिकार है।

पहाड़ गंज का मौजूदा परिदृश्य किसी अपराध कथा जैसा लगने लगा है, जहां दिनदहाड़े कानून को ठेंगा दिखाकर निर्माण तो होते हैं, मगर न कोई निरीक्षण आता है, न कोई नोटिस, और न ही कोई कार्रवाई। वर्षों से क्षेत्रीय निगम अधिकारियों की मिलीभगत से एक पूरा सिस्टम बन गया है जिसमें शिकायत करने पर भी कार्रवाई का दिखावा भर किया जाता है। ज़मीन हड़पने का यह खेल अब गली-कूचों तक सीमित नहीं रहा, यह एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है।

सरकारी उदासीनता का आलम यह है कि जब सुलभ शौचालय गिराया गया, तब न तो कोई अधिकारी वहां उपस्थित था, और न ही कोई जांच की गई कि क्या तोड़फोड़ के लिए कोई वैध अनुमति ली गई थी। मजे की बात यह है कि इस सब के बावजूद भी क्षेत्रीय प्रशासन इस पूरे मामले पर मौन साधे हुए है। क्या यह चुप्पी रिश्वत के घूंट से तर है? क्या बिल्डर माफिया अब न केवल ज़मीन का सौदागर है, बल्कि वह जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों का भी सौदा कर चुका है?

जनता यह जानना चाहती है कि आखिर कब तक यह लूट जारी रहेगी? कब तक निगम में जमे बैठे बेलदार अपनी कुर्सियों पर जमे रहेंगे? यह बेलदार अगर निष्पक्ष होते, तो क्या सुलभ शौचालय जैसे सार्वजनिक स्थान को दिनदहाड़े गिराया जा सकता था? अगर ये वाकई जनसेवक होते, तो क्या वे माफिया के दबाव में चुपचाप बैठे रहते? नहीं, बिल्कुल नहीं। ये बेलदार अब उस सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं जो आम जनता के अधिकारों की कब्र खुदवाने में जुटा है।

आज अगर कोई व्यक्ति पहाड़ गंज की गलियों में घूमे, तो उसे सिर्फ धूल, अवैध निर्माण और भयभीत चेहरे दिखाई देंगे। यह वही पहाड़ गंज है, जो कभी पर्यटकों की पहली पसंद हुआ करता था। आज यहां डर का राज है, माफिया की हुकूमत है, और निगम का आत्मसमर्पण है। बिल्डर माफिया अब केवल ज़मीन नहीं, बल्कि सामाजिक ढांचे को भी गिरा रहा है।

यह मुद्दा अब केवल नगर निगम तक सीमित नहीं रह गया है, यह कानून-व्यवस्था, प्रशासनिक ईमानदारी और आमजन के अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और नगर निगम – तीनों पर यह नैतिक और संवैधानिक दायित्व बनता है कि वे इस पूरे प्रकरण पर कड़ा संज्ञान लें और पहाड़ गंज को इस बिल्डर माफिया के चंगुल से मुक्त कराएं।

अगर अब भी कोई कार्रवाई नहीं होती, अगर वर्षों से जमे बेलदारों का ट्रांसफर नहीं किया जाता, और अगर निगम अपनी आंखें बंद करके बैठा रहता है, तो वह दिन दूर नहीं जब पहाड़ गंज दिल्ली ही नहीं, पूरे भारत में एक अपराध क्षेत्र के रूप में जाना जाएगा। यह केवल चेतावनी नहीं, एक कड़वा यथार्थ है जिसकी आहट अब सुनाई देने लगी है। क्या हम जागेंगे या फिर आने वाली पीढ़ियों को एक भ्रष्ट, गिरा हुआ और माफिया-शासित पहाड़ गंज विरासत में देंगे?

अब समय आ गया है कि जनता उठे, सवाल पूछे, और जवाब की मांग करे – क्योंकि चुप रहना अब अपराध है।

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