एडवोकेट संशोधन विधेयक 2024 का विरोध करते हुए तीस हज़ारी कोर्ट परिसर में वकीलों का विरोध प्रदर्शन

अशोक कुमार निर्भय 


नई दिल्ली। वकीलों की देशव्यापी हड़ताल के चलते न्यायिक व्यवस्था प्रभावित रही। देशभर के अधिवक्ताओं ने नए एडवोकेट संशोधन विधेयक 2024 का विरोध करते हुए सभी अदालतों से दूरी बनाई, जिससे न्यायालयों में कामकाज लगभग ठप रहा। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के आह्वान पर यह हड़ताल की गई, जिसमें विभिन्न राज्यों की बार एसोसिएशनों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। वकीलों का कहना है कि यह बिल उनके अधिकारों और स्वतंत्रता पर सीधा हमला है, जिसे वे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। दिल्ली बार एसोसिएशन ने भी तीस हज़ारी कोर्ट परिसर में विरोध प्रदर्शन किया इस प्रदर्शन में एडवोकेट नीरू वर्मा, एडवोकेट राम किशन, एडवोकेट प्रमोद भारद्वाज, एडवोकेट भुवन शर्मा, एडवोकेट संजय कनोजिया,एडवोकेट उपेंद्र, एडवोकेट अमित वर्मा,एडवोकेट आशुतोष पांडेय आदि ने हिस्सा लिया। 
इन मौके पर पूर्व उपाध्यक्ष दिल्ली बार एसोसिएशन एडवोकेट अनिल तोमर ने बिल का विरोध जताते हुए कहा कि संशोधित एडवोकेट बिल में कुछ ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं, जिन्हें लेकर वकील समुदाय में भारी नाराजगी है। बिल के अनुसार, किसी भी अधिवक्ता के अनुशासनहीनता के मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अलावा सरकार द्वारा नामित एक विशेष समिति को हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया है। वकीलों का मानना है कि यह समिति पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में होगी, जिससे अधिवक्ताओं की स्वायत्तता खतरे में पड़ जाएगी।इसके अलावा, बिल के क्लॉज 12(ए) के तहत बार काउंसिल के अधिकारों को सीमित किया गया है और अधिवक्ताओं के लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया को सरकार की मंजूरी से जोड़ा गया है। वकीलों का तर्क है कि इससे अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा और सरकार के प्रभाव में उनके अधिकारों का हनन होगा। क्लॉज 18(बी) में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई वकील हड़ताल या प्रदर्शन में शामिल होता है और उसके कारण किसी भी मामले की सुनवाई प्रभावित होती है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। वकीलों का कहना है कि यह उनकी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है और इससे उनकी आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है।
इसके अलावा, एडवोकेट आशुतोष पांडेय ने कहा कि नए बिल के क्लॉज 22(सी) के तहत वकीलों के खिलाफ किसी भी प्रकार की शिकायत पर जांच के लिए एक स्वतंत्र निगरानी समिति गठित करने का प्रावधान किया गया है, जिसमें सरकार के अधिकारी भी शामिल होंगे। वकीलों को डर है कि इससे उनके पेशे में अनावश्यक हस्तक्षेप होगा और वे स्वतंत्र रूप से अपने मुवक्किलों की पैरवी नहीं कर पाएंगे।वकीलों का कहना है कि यह बिल उनकी स्वायत्तता को खत्म करने की कोशिश है और अगर इसे लागू किया गया, तो न्याय व्यवस्था भी प्रभावित होगी। उनके अनुसार, वकीलों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करने की जरूरत होती है, लेकिन इस बिल के जरिए उन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
वहीं, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने साफ किया है कि जब तक सरकार इस बिल को वापस नहीं लेती या इसमें जरूरी संशोधन नहीं करती, तब तक वकीलों का आंदोलन जारी रहेगा। काउंसिल के अध्यक्ष ने कहा कि यह हड़ताल केवल एक दिन की चेतावनी थी और अगर सरकार ने उनकी मांगों को नहीं माना, तो आगे और बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
वकीलों ने मांग की है कि सरकार इस बिल को तुरंत वापस ले और वकीलों से बातचीत कर नए सुधारों पर विचार करे। उनका कहना है कि यदि अधिवक्ता स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाएंगे, तो आम नागरिकों को भी न्याय पाने में कठिनाई होगी।
देशभर के कई बड़े बार एसोसिएशनों ने भी इस बिल का विरोध किया है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे बड़े महानगरों में वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया और विरोध प्रदर्शन किए। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और कई हाईकोर्ट बार एसोसिएशनों ने इस बिल को वकीलों के अधिकारों पर हमला बताया और सरकार से इसे तुरंत वापस लेने की मांग की।
इस हड़ताल से न्यायिक प्रक्रिया पर भी व्यापक असर पड़ा। कई मामलों की सुनवाई टल गई और अदालतों में वकीलों की अनुपस्थिति के कारण कामकाज ठप रहा। कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इस बिल को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया और सरकार से इसे वापस लेने की अपील की।
अब देखना होगा कि सरकार इस विरोध के बाद क्या रुख अपनाती है। फिलहाल वकीलों का आंदोलन जारी है और अगर सरकार ने जल्द कोई निर्णय नहीं लिया, तो यह आंदोलन और तेज हो सकता है।

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