विक्रम गोस्वामी / मणि आर्य
नई दिल्ली। राजधानी में एमसीडी और बिल्डर माफिया की खुली मिलीभगत अब किसी से छिपी नहीं है। पहाड़गंज स्थित प्रॉपर्टी संख्या 8925, गली नंबर 1, मुल्तानी ढांडा में पांच मंजिला अवैध इमारत खड़ी कर दी गई है और अब उसी अवैध निर्माण को वैध दिखाकर पुलिस और पर्यटन मंत्रालय से मंजूरी लेने की साज़िश चल रही है। बिल्डर ने इस इमारत को बेड एंड ब्रेकफास्ट स्कीम के तहत लाइसेंस दिलवाने की तैयारी कर ली है, जबकि स्कीम की पहली ही शर्त का खुला उल्लंघन किया गया है।
इस योजना के तहत न केवल यह अनिवार्य है कि निर्माणकर्ता स्वयं उस घर में परिवार सहित निवास करे, बल्कि यह भी जरूरी है कि वह अधिकतम छह बेडरूम तक ही कमरे बनाए। पुलिस, फायर और स्थानीय निवासियों से एनओसी लेना भी अनिवार्य है। लेकिन यहां तो पांच मंजिला होटल जैसा ढांचा खड़ा कर दिया गया है। सवाल उठता है कि क्या एमसीडी की आंखें बंद हैं या फिर जेब गर्म?
इससे भी शर्मनाक मामला सामने आया है प्रॉपर्टी संख्या 8952 में, जहां धार्मिक आस्था को भी नहीं बख्शा गया। बाराही माता मंदिर को गिराकर बहुमंजिला फ्लैट्स बना दिए गए। शिकायत होने पर निगम और अन्य विभागों की आंखें खुलीं तो नीचे ज़मीन पर एक छोटा-सा हिस्सा फिर से मंदिर बना दिया गया, ताकि कागज़ी खानापूर्ति हो सके। लेकिन ऊपर अब भी पांच मंजिला अवैध फ्लैट खड़े हैं, जो स्पष्ट रूप से दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना है।
इन मामलों में एमसीडी की चुप्पी और बिल्डर की हिम्मत इस बात का प्रमाण है कि राजधानी की जमीन पर भ्रष्टाचार की इमारत कितनी ऊंची हो चुकी है।
अवैध निर्माणों पर कार्रवाई की बजाय अब उन्हें वैधता का जामा पहनाने की कोशिशें हो रही हैं। यदि यह माफिया गठजोड़ यूं ही बेलगाम रहा, तो दिल्ली में कानून और नियमों की कोई अहमियत नहीं रह जाएगी।
इस तरह की निर्माण गतिविधियां न सिर्फ न्याय व्यवस्था का उपहास हैं, बल्कि आम नागरिकों की सुरक्षा, आस्था और जीवनशैली के अधिकारों का भी खुला उल्लंघन हैं। अब समय आ गया है कि जनता जागे और इन अवैध निर्माणों पर न सिर्फ सवाल उठाए, बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों की भी जवाबदेही तय की जाए।