पैसे ले-देकर एनओसी दे दी जाती हैं
छात्र आरोप लगाते हैं कि अब भी ज्यादातर बिल्डिंग्स में आग से बचने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. छात्र प्रशासन पर बिना चेकिंग और अपर्याप्त तैयारी वाली बिल्डिंगों को एनओसी देने का आरोप भी लगाते हैं. आरोप लगाते हैं कि पैसे ले-देकर एनओसी दे दी जाती हैं. इसका बोझ भी उनकी फीस पर ही आता है.
छात्र एमसीडी पर इन आरोपों के साथ ही सवाल भी उठाते हैं कि पूरा इलाका ही ऐसा है कि हर कोई जान हथेली पर लेकर घूम रहा है. पीजी ऐसी गलियों में बसे हैं कि कोई प्राकृतिक आपदा आ जाए तो हम निकल ना पाएं. कोचिंग, लाइब्रेरी हर दूसरे घर में चल रहीं. मगर वो कहते हैं कि इनको बंद करवाना ही अंतिम समाधान नहीं है. जो समाधान निकले उसमें हम छात्रों का हित भी ध्यान में रखा जाए. ऐसा ना हो कि आपकी कार्रवाई हमारी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ जाए।
एकदम एक-दूसरे से सटे… सांस लेने की जगह नहीं… सिर उठाओ तो ऊपर तारों का मकड़जाल… मकड़जाल को आंखें भेद पाईं तो बालकनी से झांकते बच्चे…तंग गलियां… खस्ताहाल सड़क… दोनों तरफ तने 4-5 मंजिला मकान..UPSC क्रैक करने की जुगत में गांव-घर से दूर बड़े शहर आए बच्चे।
दिल्ली की कोचिंग मंडी मुखर्जी नगर या करोल बाग की गलियों में अगर आप जाएं, जहां ये सपने लेकर आए छात्र रहते हैं तो आप अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाएंगे।
विश्वास को धक्का तब और लगता है जब आप इन बच्चों के बुलावे पर तीन-चार मंजिल चढ़ इनके कमरों तक पहुंच जाते हैं. सच कहें तो जहां ये रहते हैं, उनको कमरा कहना भी बेईमानी होगा. बेहद छोटे इन कमरों में भी दो चारपाइयां पड़ी हैं. यानी जहां एक छात्र ना रह सके, वहां दो रह रहे. कमरे में बची जगह में भी सिर्फ एक टेबल डाली जा सकती है तो बच्चे शिफ्ट में पढ़ते हैं।
बाहर रखे एक जर्जर छोटे कूलर की तरफ इशारा करता एक छात्र बोलता है- इसका भी किराया लगता है…600 रुपये प्रति महीना. इसके अलावा कमरे का 6000-7000 रुपये. खाने का खर्चा अलग है. खाना भी ऐसा कि पूछिए मत. पानी ऐसा आता है कि बाल झड़े जा रहे हैं. लाइब्रेरी जॉइन कर ली तो ढाई से तीन हजार रुपये महीने का बोझ अलग. टॉयलेट हर मंजिल पर एक है और ये टॉयलेट मंजिल है करीब 20 छात्रों की. रोज सुबह यहां लगी लाइन एक अलग संघर्ष है।
छात्र बताते हैं कि बारिश होती है तो सड़क पर घुटने के ऊपर तक पानी भर जाता है. ये हाल हर साल का है. ऊपर तारों के जंजाल हर वक्त मन में ये डर पैदा करते हैं कि अब करंट लगा कि तब. यहां मिला एक छात्र सरकार से मांग करता है कि छात्रों का भी बीमा हो जाना चाहिए. ऐसी जगह रहने में हमेशा रिस्क जो रहता है. कम से कम जान गई तो घरवालों को कुछ मिल तो जाएगा. वरना राउ IAS वाली घटना के बाद जो हुआ, वही होगा. मुआवजे तक के लिए प्रदर्शन, धरना देना होगा।
ये सब जानकर आपके मन में भी एक सवाल आया होगा- कि भाई इतनी तकलीफ है तो यहां रह क्यों रहे हो, आते ही क्यों हो, घर गांव में क्यों नहीं पढ़ते? जवाब मिलता है- सर कोचिंग कहां हैं, गाइडेंस कहां है ऐसा हमारे शहर-गांव में. वरना कौन यहां रहना चाहेगा?
एक छात्र तंज में ये भी कहता है कि तमाम छात्र तो सोशल मीडिया पर बेचे जा रहे सपनों को देखकर भी यहां पहुंच जाते हैं. फिर यहां के माहौल और अव्यवस्था को देखकर सोचते हैं- ये तो वो सपनों की दिल्ली नहीं थी, जिसका ख्वाब हमें दिखाया गया।
विकास सर को हम भगवान मानते थे
ख्वाब दिखाती, सपने बेंचती दिल्ली की इस कोचिंग मंडी की तमाम कोचिंग भी इसीलिए इस वक्त छात्रों के निशाने पर हैं. खासतौर पर सोशल मीडिया पर वायरल रहने वाले बड़े गुरुओं के नाम. 27 जुलाई को दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर की राउ IAS कोचिंग में हुई घटना के बाद से इन गुरुओं की चुप्पी ने छात्रों का गुस्सा और बढ़ा दिया. घटना के बाद से ही प्रदर्शन चल रहा है. खासतौर पर चर्चा में हैं विकास दिव्यकीर्ति, जिन्होंने हिंदी मीडियम से तैयारी करने वाले छात्रों के दिल में एक खास जगह बना रखी है. मगर अब छात्र दिल टूटने की बात कह रहे हैं।
नाराजगी का कारण पूछने पर कहते हैं- विकास सर को हम भगवान मानते थे, वो जो कहते थे मानते थे. मगर हमारे 3 साथी मर गए और उनके मुंह से एक संवेदना का शब्द नहीं आया. ऐसी ही नाराजगी अवध ओझा, खान सर जैसे वायरल गुरुओं से भी है. मगर सुर्खियों में रहा 29 की रात हुआ विकास दिव्यकीर्ति के संस्थान और आवास के बाहर छात्रों का प्रदर्शन।
विकास दिव्यकीर्ति से छात्र इस बात से भी नाराज दिखते हैं कि एथिक्स पढ़ाने वाले गुरुजी की कोचिंग खुद अवैध तरीके से एक बेसमेंट में चल रही थी, जिसे एमसीडी ने सील कर दिया है।
इस सील कोचिंग में हम पहुंचे तो छात्र नाराज दिखे. विकास दिव्यकीर्ति से जवाब देने की मांग की. इसी बीच एक और मुद्दा उठाया और ध्यान दिलाया कि इन सब घटनाओं का असली जिम्मेदार एमसीडी और प्रशासन है. छात्रों का कहना था कि एमसीडी को कार्रवाई की याद तब ही आती है जब कोई घटना होती है. वरना हर साल यहां बारिश होती है. पानी भरता है. पानी घरों में जाता है. जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. मगर एमसीडी इंतजार करता है राउ आईएएस कोचिंग जैसी घटनाओं की. या फिर उसे इंतजार रहता है कि कोई नीलेश राय पीजी में जाते वक्त उस लोहे के गेट के चपेट में आकर मर जाए, जिसमें प्रशासनिक मक्कारी की वजह से करंट उतरा हो।
सरकार को लगाम लगानी चाहिए
तमाम छात्र एमसीडी की इस मौसमी बारिश जैसी कार्रवाई की तरफ भी इशारा करते हैं कि कैसे इस वक्त अभियान चलाकर लाइब्रेरी बंद करवाई जा रही हैं. एकदम से हो रही इस कार्रवाई से उनके पास पढ़ने को जगह नहीं बची है. कमरे इतने तंग हैं कि वहां पढ़ा नहीं जा सकता. जो लाइब्रेरी थी, वो बंद हो गई और जो बची हैं वो इतनी महंगी हैं कि जा नहीं सकते. छात्र इसके साथ ही कोचिंग माफियाओं, ब्रोकर तंत्र पर भी कार्रवाई की मांग करते हैं।
छात्र कहते हैं कि सरकार को एक रेगुलेटरी बनाकर रहने खाने की फीस से लेकर कोचिंग की महंगी फीस पर लगाम लगानी चाहिए. तमाम छात्र पिछले साल जून में संस्कृति कोचिंग में लगी आग की घटना भी याद दिलाते हैं. जिसमें तमाम छात्रों को जान बचाने के लिए तीसरी मंजिल से कूदते देखा गया था. छात्र कहते हैं कि इस घटना के बाद कुछ दिन तो सख्ती हुई, मगर फिर सब शांत पड़ गया।
इस बार समाधान चाहिए वरना शांत नहीं बैठेंगे
छात्र कोचिंग फीस में 18 पर्सेंट टैक्स लेने का भी मुद्दा उठाते हैं. वो कहते हैं कि सरकार हमारी दी गई फीस पर इतना मोटा टैक्स ले रही है, पर हमें क्या मिल रहा है? सरकार क्या इस बात का जवाब देगी? छात्र इन सब शिकायतों के साथ ही सरकार को चेतावनी भी देते हैं कि इस बार समाधान चाहिए वरना हम शांत नहीं बैठेंगे।