आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर का मानना है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता प्रदान करना भारत के लिए ठीक नहीं होगा। उनका कहना है कि वो अभी यह नहीं कह सकते कि भारत में इस प्रकार का रिश्ता किस तरह से फिट बैठने वाला है।
श्रीश्री ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि शादी एक संस्था है। ये सिर्फ दो व्यस्कों के बीच का संबंध नहीं है। इसका दूर तक असर जाता है। बता दें कि, समलैंगिक शादियों को कानूनी वैधता देने के मामले पर फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई जारी है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मसले पर सुनवाई कर रही है।
श्रीश्री रविशंकर का कहना था कि विवाह में परिवार भी शामिल होते हैं। इस रिश्ते से जन लेने वाले बच्चों को भी हम नहीं भूल सकते । मैं नहीं कह सकता कि हमारे देश में समलैंगिक शादियां किस प्रकार से फिट बैठेंगी। उन्हें तो ये भी नहीं पता कि विदेशों में इस प्रकार के रिश्तों का क्या प्रभाव पड़ता है। जब उनसे पुछा गया कि क्या वो अपने स्कूलों में मेल-फीमेल के साथ अदर्स के लिए बाथरूम बनाना पसंद करेंगे।
इस पर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर का कहना था कि क्यों नहीं। उनका कहना था कि वे काफी समय से ऐसा कर रहे हैं। अपनी बात को खत्म करते वक़्त उन्होंने हंसते हुए कहा कि हां एयरोप्लेन केस न हो…।